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जितनी शिक्षा सुख से मिलती है उससे कहीं अधिक शिक्षा दुख से मिलती है



M. K. Mazumdar | Dr. mk mazumdar | manoj kumar mazumdar



 जितनी शिक्षा सुख से मिलती है उससे कहीं अधिक शिक्षा दुख से मिलती है  


जो हमेशा सुख के पीछे भागते रहते है, और दुख से दूर भागते हैं। वे जीवन को खुशियों के साथ जीने की बजाय परेशानियों में जीते हंै। जितनी शिक्षा सुख से मिलती है। उससे कहीं अधिक शिक्षा दुख से मिलती हैं। सुख से खुशी, उत्साह, साहस, उन्नति, आत्मविश्वास, सफलता आदि मिलते हैं। जबकि दुख जीवन को घर्षण कर तराशता है और उसे चमकदार हीरे के समान बना देता है।
महान पुरूषों के चरित्र का अध्ययन करने के बाद आपको ज्ञात होता है कि वे दुखों की अग्नि में तप कर कुंदन की तरह चमक कर बाहर निकले हैं। जब तक आप दुख के चक्र में पड़ कर खुद को तराश नहीं लेते तब तक आप चमकदार हीरे के समान नहीं चमकते हैं। खुद को तराश्ना है तो दुखों का सामना करना होगा। तब जाकर सफलता की चोटी पर पहुंच सकते हैं।
हमेशा सुख के पीछे भागते रहना दुख से भी अधिक दुख देता है। कुछ लोग सुख को हासिल करने के लिए उसके पीछे आंख मुद कर भागते रहते हैं। दिन रात एक कर देते हैं। उन्हें अपने खाने-पीने, सोने-उठने का होश नहीं रहता है। एश्वर्य की सारी चीजें हासिल कर लेने के बाद उनके हिससे में तनाव और ढ़ेर सारी बीमारी आती है। उनके जीवन से सुख नाम की चीज हवा में इत्र की खुश्बू की तरह उड़ जाती है।   
बोर्डमैन कहते है, कर्म को बोओ, और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोओ और भाग्य की फसल काटो। दुख तब तक दुख बना रहता है जब तक आप उसे उदास, असफलता, नाकामयाबी, पिछड़ेपन के रूप में ग्रहण करते है। दुख को आंनद के रूप में ग्रहण करने पर दुख लंबे समय तक आपके पास नहीं आ सकता है।

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